बदहवास आलम अजीब वक्त...


बदहवास आलम अजीब वक्त...


दर्द के सैलाब मे डूबने निकले हैं


शब्दों के रथ पर घूमने निकले हैं


बागबान से संग दिल सख्त नहीं हम


आहों की आहट से मोम बन पिघले हैं


जो प्रतीकों से राहें और मंजिल दिखाते हैं


उनकी निगाह मे वे बाजीगर ,पगले हैं


बदहवास आलम ,अजीब वक्त है


ईमां के अर्थो - आयाम बदले हैं


मौत पल रही है कोख मे इंसान की


मानवता के सभी मंजर धुंधले हैं