मीठा घेवर



'अम्मा ने ठेका ले रखा है क्या...सबके जज घेवर पर चाशनी चढ़ाने का!"


आज कजरी सुबह से बड़बड़ा रही थी। 


'कजरी'अम्मा की मुंह बोली बेटी...थी! बात यह है कि हरियाली तीज का जब भी त्यौहार आता ...पड़ोसी फीका घेवर - शक्कर अम्मा के पास ले आते ...और कहते"अम्मा! हमारे घेवर पर चाशनी चढ़ा दो!"


अम्मा भी खुशी-खुशी चाशनी चढ़ा देती ...जब पड़ोसी अपना मीठा घेवर लेकर चले जाते तब कजरी खूब लड़ती...! ___ "घेवर और शक्कर दूसरों का, लेकिन बलिता । (ईंधन) तो चूल्हे में तुम्हारा ही बलता है न...!" "अरी!कजरी,जी न जला...साल में एक ही बार तो यै काम करूं हूं...!" ___ "पर० कुछ भी कहो अम्मा, पूरे पंद्रह दिन तुम्हारा ही बलिता, बलता है !" "हम्बे!यै तो म सोच्ची ही कोनी??? इसी तरह कजरी ने अम्मा के पीछे से... पड़ोसियों को भी समझा दिया था! तब से अम्मा को जो बुलाता ,उनके घर जाकर घेवर में चाशनी चढ़ा आती... प्रशंसा तब भी होती थी ... प्रशंसा आज भी ...